Monday, 16 June 2014

पेट की गैस को ठीक करने के उपाय - cure gas trouble



^ पेट की गैस को ठीक करने के उपाय


> मानसिक तनाव, अशांति, भय, चिंता, क्रोध के कारण पाचन अंगों के आवश्यक पाचक रसों का स्राव कम हो जाता है, जिससे अज्रीर्ण(Indigestion) की तकलीफ हो जाती है और अज्रीर्ण का विकृत रूप गैस कि बिमारी पैदा कर देता है।

> भोजन में मूंग, चना, मटर, अरहर, आलू, सेम, चावल, तथा तेज मिर्च मसाले युक्त आहार अधिक मात्रा में सेवन न करें! शीर्घ पचने वाले आहार जैसे सब्जियां, खिचड़ी, चोकर सहित बनी आटें कि रोटी, दूध, तोरई, कद्दू, पालक, टिंडा, शलजम, अदरक, आवंला, नींबू आदि का सेवन अधिक करना चाहिए।

>भोजन खूब चबा चबा कर आराम से करना चाहिए! बीच बीच में अधिक पानी ना पिएं! भोजन के दो घंटे के बाद 1 से 2 गिलास पानी पिएं। दोनों समय के भोजन के बीच हल्का नाश्ता फल आदि अवश्य खाएं।

>तेल गरिष्ठ भोजन से परहेज करें! भोजन सादा, सात्त्विक और प्राक्रतिक अवस्था में सेवन करने कि कोशिश करें।

> दिन भर में 8 से 10 गिलास पानी का सेवन अवश्य करें।

> प्रतिदिन कोई न कोई व्यायाम करने कि आदत जरुर बनाएं! शाम को घूमने जाएं! पेट के आसन से व्यायाम का पूरा लाभ मिलता है। प्राणयाम करने से भी पेट की गैस की तकलीफ दूर हो जाती है।

>शराब, चाय, कॉफी, तम्बाकू, गुटखा, जैसे व्यसन से बचें।

> प्राक्रतिक वेगों को रोके रखने कि आदत को छोड़ें जैसे मूत्र या मल।

> दिन में सोना छोड़ दें और रात को मानसिक परिश्रम से बचें|

> एक चम्मच अजवाइन के साथ चुटकी भर काला नमक भोजन के बाद चबाकर खाने से पेट कि गैस शीर्घ ही निकल जाती है|

>अदरक और नींबू का रस एक एक चम्मच कि मात्रा में लेकर थोड़ा सा नमक मिलकर भोजन के बाद दोनों समय सेवन करने से गैस कि सारी तकलीफें दूर हो जाती हैं , और भोजन भो हजम हो जाता है!

>भोजन करते समय बीच बीच में लहसुन, हिंग, थोड़ी थोड़ी मात्रा में खाते रहने से गैस कि तकलीफ नहीं होती|

>हरड, सोंठ का चूर्ण आधा आधा चम्मच कि मात्रा में लेकर उसमे थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर भोजन के बाद पानी से सेवन करने से पाचन ठीक प्रकार से होता है और गैस नहीं बनती!

>नींबू का रस लेने से गैस कि तकलीफ नहीं होती और पाचन क्रिया सुधरती है!

Monday, 9 June 2014

अंडरआर्म के पसीने से कैसे पाएं छुटकारा

पसीने की बदबू आपको शर्मिंदा कर सकती है। अगर आपके अंडर आर्म में ज्यादा पसीना  होता है तो इसका उपचार जरूर करें नहीं तो लोग आपसे दूर भागने लगेंगे। कई बार जब यह कपड़े पर दाग छोड़ देता है तो भी यह बहुत शर्मिंदगी भरा होता है। लेकिन अगर आप कुछ आसान उपचार अपनाएं तो आप बहुत हद तक अंडरऑर्म के पसीने को कंट्रोल कर सकते हैं। आइए जानें अंडर आर्म से बचने के उपायों के बारे में।

बेकिंग सोडा

नहाने के बाद थोड़ा सा बेकिंग सोडा लेकर पानी के साथ मिला कर अपने अंडरआर्म और शरीर पर लगा लें। इसके बाद उसे साफ तौलिये से पोंछ लें। बेकिंग सोडा को आप डियो लगाने के बाद भी प्रयोग कर सकते हैं। डियो स्‍प्रे करें और फिर उसके ऊपर से थोड़ा बेकिंग सोडा लगा लें।

साफ-सफाई का खयाल

अपने अंडरआर्म को साफ-सुथरा रखें। इससे पसीने को रोकने में बहुत मदद मिलती है। इससे पर्सनल हाइजीन होती है और आपकी त्‍वचा भी संक्रमण और बीमारी से बचती है। जब भी कपड़ा पहने तो उससे पहले अपने अंडरआर्म को सुखा लें। इससे कम पसीना आएगा।

खीरे का प्रयोग

नहाने के बाद अपने आर्मपिट पर खीरे की स्‍लाइस रगड़े। खीरे में एंटीऑक्‍सीड़ेंट पाया जाता है जो कि शरीर से बैक्‍‍टीरिया का नाश करके बदबू को आने से रोकता है।

आहार पर ध्यान दें

गर्मियां शरीर को बुरी तरह प्रभावित करती हैं। इस मौसम में पाचन तंत्र भी प्रभावित होता है। गर्मियों में ताजा और हल्का भोजन करें। खीरा, पुदीना, संतरा, तरबूज, मौसमी का सेवन करें, ये प्यास बुझाने वाले होते हैं, क्योंकि इसमें सोडियम और कैलोरी की मात्रा काफी कम और एंटी ऑक्सीडेंट, कैल्शियम तथा विटामिन ए काफी मात्रा में होते हैं। ये सब मिलकर इन्हें अच्छे ठंडक देने वाले भोज्य पदार्थ बना देते हैं। इसके अलावा दही और छाछ भी शरीर को ठंडक प्रदान करते हैं।

सेब का सिरका

सेब का सिरका नहाने से पहले सेब के सिरके को अपने बगल में 30 मिनट के लिये रोजाना लगाएं। फिर हल्के साबुन से धो लें। अच्छा रिजल्ट पाने के लिये इसे रात को सोने से पहले लगा लें।

नींबू

नींबू के प्रयोग  से पसीने को दूर रखने में मदद मिलती है। हांलाकि इस तरीके से आप अपने काले पड़ चुके आर्मपिट का रंग भी निखार सकते हैं।

कॉटन का प्रयोग

हमेशा लाइट कॉटन पहने आप जो कपड़ा पहनते हैं, कभी कभी वह भी आपको पसीना दे सकता है। इसलिये हमेशा कोशिश करें कि लाइट फैबरिक जैसे कॉटन आदि ही पहने। यह नमी को तुरंत ही सोख लेता है।

पानी ज्यादा पीएं

गर्मियों में पानी ज्यादा पीएं इससे पसीने की बदबू कम आएगी और आप खुद को तरोताजा महसूस करेंगे।

खान पान का स्वास्थ्य पर प्रभाव

आपके खान-पान का आपके स्वास्थ्य पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। भले ही आपने अब तक इस ओर ध्यान न दिया हो लेकिन आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि हर भोजन और हर फल आपके स्वास्थ्य के लिए अलग-अलग उपयोगिता रखता है। मसलन आप बहुत थकी हैं या तनाव में हैं तो उसके लिए विशेष फल और विशेष खाना आपके लिए अच्छा होगा। कब और क्या खाएं बता रही हैं डायटीशियन शिखा शर्मा।


अगर आप तनाव महसूस कर रही हैं 


एक गिलास लस्सी या एक कटोरी दलिया: एक गिलास लस्सी या कोल्ड कॉफी पीने या एक कटोरी दलिया खाने से दिमाग को शांति मिलती हैं क्योंकि इसमें सेरोटोनिन पाया जाता है जो दिमाग को ताजगी देता है और तनाव को दूर करता है। 


अगर आप थकी हुई हैं 


मिक्स फ्रूट चाट: एक बाउल मिक्स फ्रूट चाट खाएं या एक गिलास मौसमी का जूस पिएं। इससे तत्काल एनर्जी मिलती है। इसमें फ्रूट शुगर होता है जिससे शीघ्र एनर्जी मिलती है। अगर फ्रूट चाट दही में मिलाकर लें तो लंबे समय तक के लिए एनर्जी मिलती है। 

एक्सरसाइज के बाद क्या खाएं 


चीज सैंडविच: आधे या एक घंटे बाद ऐसी चीज खाएं जिसमें प्रोटीन-कार्बोहाइड्रेट मिला हुआ हो। जैसे दलिया, चिकेन रोल, ब्राउन ब्रेड से बने चीज सैंडविच या पनीर सैंडविच। एक्सरसाइज के बाद कार्बोहाइड्रेट का स्तर कम हो जाता है और ऐसी चीज खाने से शरीर को कार्बोहाइड्रेट पुन: मिल जाता है।  

जुकाम से बचने के लिए 


संतरा या कीवी : आपके शरीर को सर्दी से मुकाबला करने के लिए विटामिन सी की जरूरत होती है। विटामिन सी कमी के कारण ही जुकाम होता है। जुकाम के दौरान शरीर की इम्यूनिटी कम हो जाती है जिसका मतलब है कि लिम्फोसाइट्स कम हो जाते हैं। विटामिन सी इसकी कमी को रोक सकता है। ऐसे में संतरा, पपीता, कीवी, केला या आंवला खाया जा सकता है। आंवले का पाउडर पानी के साथ पी सकती हैं। कीवी में एक संतरे की तरह विटामिन सी होता है। केले में विटामिन के साथ पोटैशियम भी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है, जो आपकी एनर्जी को बढ़ाता है और जुकाम से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है। 

अगर आप थककर पस्त हो गई हों 


मिल्क शेक: ऐसे में आपको तरल पदार्थ लेना चाहिए ताकि शरीर को पचाने में मेहनत न करनी पड़े। ठंडाई, मिल्क शेक, मैंगो शेक, एपल शेक या कोई भी फ्रूट शेक पीने से तत्काल एनर्जी मिलती है और ताजगी आ जाती है। मिल्क शेक से ट्रैंक्यूलिटी मिलती है जिससे आपको काफी आराम मिलता है। 

अगर आपको सिरदर्द हो  


पुदीने या तुलसी की चाय : यह चाय शहद के साथ पीने से लाभ होता है। हर्बल टी, तुलसी या पुदीने की चाय दिमाग को ठंडक प्रदान करती है। कोई भी तरल पदार्थ आपको रीहाइड्रेट करेगा। यदि आप चाय में शहद मिलाकर पीती हैं तो वह आपके ब्लड शुगर स्तर को अत्यधिक गिरने नहीं देगा। चाय जायकेदार होने के साथ-साथ आपको ताजगी भी प्रदान करेगी। 

colouring foods रंगीन आहार है सेहत का आधार



रंगीन खाद्य पदार्थ

हर रंग कुछ कहता है, यह बात सेहत पर भी लागू होती है। अलग-अलग रंगों के फल और सब्जियों की अपनी अलग ही खूबी होती है। यह खूबियां ही उन्‍हें दूसरों से अलग बनाती है। शरीर को भी उन फलों और सब्जियों की जरूरत होती है जिसमें  एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होता है। गहरे लाल, गुलाबी और नारंगी रंग में फायटोकेमिकल भारी मात्रा में मिलते हैं जो शरीर में हीमोग्लोबिन को बढ़ाते हैं। आइए जानें किस  रंग के फल या सब्‍जी में कौन सी खूबी है और उसका हमारी सेहत पर क्‍या असर पड़ता है।






रंगीन खाद्य पदार्थों में पोषक तत्‍व

फल और सब्जियां प्राकृतिक रूप से जितने रंगीन होते हैं, वे उतने ही अधिक स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक होते हैं। रंगीन फल या सब्जियों में बीटा-कैरोटीन, विटामिन बी समेत विभिन्न पोषक तत्व अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी इस बात को मानते हैं कि प्राकृतिक रंगों से भरपूर फल और सब्जी में एंटीऑक्सिडेंट विटामिन और मिनरल मौजूद होते हैं जो शरीर को कई प्रकार की बीमारियों से बचाते हैं। इसके अलावा अलग-अलग रंगों के खाद्य पदार्थ आपके शरीर के अलग-अलग हिस्सों को फायदा पहुंचाते हैं।

हरे रंग के खाद्य पदार्थ
ब्रोकोली, गोभी, पालक जैसी हरी सब्जियों में विटामिन बी और मिनरल होते हैं। इनके सेवन से मानसिक तनाव कम होता है और प्रतिरक्षा प्रणाली भी मजबूत होती है। इसके अलावा हरे फल और सब्जियों में लूटिन नामक फायटोकेमिकल भी होते हैं, जो लीवर की रक्षा करते हैं। इसलिए हरे रंग को अपने नियमित आहार का हिस्‍सा बनाये। 













लाल रंग के फल और सब्जियां
टमाटर, तरबूज, लाल-गोभी इस श्रेणी में आते हैं। इनमें फाइटोकेमिकल्‍स और लाइकोपीन नामक रसायन भी होता है जो किसी भी प्रकार की आंतरिक क्षति या सूरज की किरणों से होने वाली त्‍वचा की क्षति से सुरक्षा करता है। इसके अलावा दिल की रक्षा भी करता है। स्ट्रॉबेरी, रसबेरी तथा बीटरूट में एंथोसायनिन पाए जाते हैं। यह फायटोकेमिकल्स का ही एक समूह है, जो उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करता है और डायबिटीज से जुड़ी समस्याओं से बचाव करता है।













पीले रंग सब्जियां और फल
पीले रंग के खाद्य पदार्थों में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होता हैं, यह मुक्त कण का मुकाबला कर शरीर में सूजन को कम करने, एलर्जी को रोकने और स्‍वस्‍थ त्‍वचा के लिए फायदेमंद होता है। पीले रंग के फल में कैरोटिनायड और विटामिन एक प्रचुर मात्रा में होता है जो ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा कम करते है। पीले रंग के खाद्य पदार्थों में नींबू, अनानास, पीली शिमला मिर्च, और अंगूर शामिल हैं।

काले रंग के खाद्य पदार्थ
बेशक काले रंग के कपड़े लोगों को पसंद होते हैं लेकिन खान-पीने के मामले में काला रंग आमतौर पर लोगों को पसंद नहीं होता है। लेकिन य‍कीन मानिए, काले रंग के आहार आपके किडनी के लिए बहुत लाभकारी होता है। इसलिए मुनक्‍का और काले जैतून को सेवन अपने आहार में करें। इसके अलावा काले रंग की गाजर में प्रचुर मात्रा में एंथासाइनीन पाया जाता है, जो शरीर में कोलेस्‍ट्राल को कम करता है।

जामुनी सब्जियां और फल
जामुनी फल-सब्जियों को अपने आहार में शामिल करना मस्तिष्‍क के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए अच्‍छा होता है। इसके लिए अंगूर, प्याज, जामुनी रंग की पत्तागोभी, बैंगन आदि को अपने आहार में शामिल करें। इसके अलावा ब्लूबेरी एंटी-ऑक्सिडेंट को बहुत अच्‍छा स्रोत है। ये दिल की बीमारी और कैंसर की आशंका को कम करती हैं और शरीर में बैक्टीरिया को जमा होने से भी रोकती हैं।

सफेद सब्जियां और फल
सफेद रंग की सब्जियां आपके फेफड़ों के लिए फायदेमंद होते हैं। इसमें विटामिन सी, बी कॉम्पलेक्स, सल्फर आयरन, कैल्शियम, मैंगनीज, फास्फोरस भरपूर मात्रा में होता हैं। सफेद रंग के खाद्य पदार्थों में कुएर्स्टिन नामक पोषक तत्व होता है जो हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देता हैं। इसके अलावा आलू, लहसुन, सफेद मशरूम आदि का सेवन करने से उच्‍च रक्‍तचाप के रोगियों का ब्‍लड प्रेशर सामान्‍य रहता है।

नारंगी सब्जियां और फल
नारंगी रंग के खाद्य पदार्थ बीटा कैरोटीन से उच्‍च होते हैं, इसके अलावा इसमें एंटीऑक्‍सीडेंट और विटामिन ए भी प्रचुर मात्रा में होता है। प्‍लीहा को सुरक्षित रखने के लिए भी नारंगी रंग के खाद्य पदार्थ खाने चाहिए क्‍योंकि संतरों में पाया जाने वाला भरपूर मात्रा में विटामिन सी और कुछ मात्रा में विटामिन ए, प्‍लीहा के लिए अच्‍छा होता है। इसके अलावा गाजर, कद्दू, शक्‍करकंद जैसी सब्जियां में बीटा कैरोटीन आंखों और त्‍वचा के लिए अच्‍छा होता है।
मौसम के अनुसार फलों और सब्जियों का सेवन
स्‍वस्‍थ आहारों के सेवन से बहुत सी बीमारियों को खतरा कम हो जाता है। लेकिन इन सब आहारों को लेते समय एक बात का ध्‍यान रखना चाहिए कि मौसम के अनुसार ही रंगीन सब्जियों और फलों का सेवन करें। मौसम के अनुसार ही सही मात्रा में व सही समय पर फलों का सेवन करें।

मुंह के ये घाव/छाले......III.......कैसे होंगे ये ठीक ?





स्वाभाविक प्रश्न है कि जब मुंह में ये छाले हो ही जायें, तो इन का इलाज कैसे किया जाये। इन के इलाज के लिये जो बात समझनी सब से महत्त्वपूर्ण है वह यही है कि इन छालों को ठीक करना किसी डाक्टर के वश की बात तो है नहीं....क्योंकि अन्य बीमारियों की तरह प्रकृति ही इन से निजात दिलाने में हमारी मदद करती है। हम ने तो सिर्फ़ मुंह में एक ऐसा वातावरण मुहैया करवाना है जो कि इन छालों को शीघ्रअतिशीघ्र ठीक होने में (हीलिंग) मदद करे।

सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जब हम लोग मुंह के इन छालों से परेशान हों तो हमें अपना खान-पान बिल्कुल बलैंड सा रखना होगा.....बलैंड से मतलब है बिल्कुल मिर्च-मसालों से रहित। मैं अपने मरीज़ों को ऐसे खान-पान के लिये प्रेरित यह कह कर करता हूं कि अगर हमारे चमड़ी पर कोई घाव है तो उस पर नमक लग जाये तो क्या होता है, ठीक उसी प्रकार ही मुंह में छाले होने पर भी अगर मिर्च-मसाले वाला खाना खाया जायेगा तो कैसे होगी फॉस्ट हीलिंग ?

और , दूसरी बात यह है कि मुंह के इन छालों पर कोई भी दर्द-निवारक ऐंसीसैप्टिक ड्राप्स लगा देने चाहियें......ऐसे ड्राप्स अथवा अब तो इन्हीं नाम से ट्यूब रूप में भी दवायें आने लगी हैं....कुछ के नाम मैं लिख रहा हूं.......Dentogel, Dologel, Zytee, Emergel, Gelora ORAL ANALGESIC / ANTISEPTIC GEL…….ये पांच नाम हैं जिन को कि मैं हज़ारों मरीज़ों के ऊपर इस्तेमाल कर चुका हूं। ( Please note that there is no commercial interest of mine involved in telling you all this…….you may find and use anyone which you feel is more suitable…. as long as it serves your purpose. Just telling you this because I an very much against all such endorsements !) …….नोट करें कि इन का भी काम मुंह के छाले को भरना नहीं है....ये केवल आप को उस छाले से दर्द से कुछ समय के लिये राहत दिला देती हैं। इन पांचों में से आप किसी भी एक दवाई को लेकर दिन में दो-चार बार छालों पर लगा सकते हैं। वैसे विशेष रूप से खाना खाने से पांच मिनट पहले तो इस दवाई का प्रयोग ज़रूर कर लें। और हां, दो-चार मिनट के बाद थूक दें। लेकिन बाई-चांस अगर कभी कभार गलती से एक-आध ड्राप निगल भी ली जाये तो इतना टेंशन लेने की कोई बात नहीं होती।

अब आते हैं इन मुंह के छालों के इलाज के लिये उपयोग होने वाली एंटीबायोटिक दवाईयों पर। वास्तव में ये मुंह के छाले वाला टापिक इतना विशाल है कि स्ट्रेट-फारवर्ड तरीके से सीधा कह देना कि एंटीबायोटिक दवाईयां लेनी हैं कि नहीं ....कुछ कठिन सा ही काम है। जैसे जैसे मैं इस सीरिज़ में आगे बढूंगा तो हम देख कर हैरान रह जायेंगे कि इन मुंह के छालों की भी इतनी श्रेणीयां हैं और इन का इलाज भी इतना अलग अलग किस्म का। अभी तो मैं केवल बात कर रहा हूं उन छालों को जो लोगों को यूं ही कभी कभी परेशान करते रहते हैं....इन में किसी एंटीबायोटिक दवाईयों का कोई स्थान नहीं है। लेकिन अगर इन छालों की वजह से थूक निगलने में दिक्कत होने लगे या जबाड़े के नीचे गोटियां सी आ जायें...तो एंटीबायोटिक दवाईयां 3-4दिनों के लिये लेनी पड़ सकती हैं।


और आप कोई दर्दनिवारक टीकिया भी अपनी आवश्यकतानुसार ले सकते हैं।

कईं प्रैस्क्रिप्श्नज़ देखता हूं जिन में मैट्रोनिडाज़ोल की गोलियों का कोर्स करने की सलाह दी गई होती है। मेरे विचार में इन गोलियों को इन मुंह के छालों के लिये नहीं लेना चाहिये।

मल्टी-विटामिन टैबलेट लोग अकसर गटकनी शुरू कर देते हैं.....ठीक हैं, अगर किसी को इस से सैटीस्फैक्शन मिलती है तो बहुत अच्छा है। लेकिन मेरा तो दृढ़ विश्वास यही है कि अगर विटामिन सी की जगह कोई मौसंबी, कीनू, संतरे का जूस पी लिया जाये, य़ा तो नींबू-पानी ही पी लिया जाये या आंवले का किसी भी रूप में सेवन कर लिया जाये तो वो शायद सैंकड़ो गुणा बेहतर होगा। एक बात और कहना चाहूंगा कि जब मेरे पास ऐसे मरीज़ आते हैं तो मैं तो इस मौके को उन की खान-पान की आदतें बदलने के लिये खूब इस्तेमाल करता हूं। जैसे कि किसी को अगर आप ने अंकुरित दालें खाने के लिये प्रेरित करना हो तो इस से बेहतर और क्या मौका हो सकता है। शायद जब वे ठीक ठाक हों तो आप की इस सलाह को हंस कर टाल दें....लेकिन जब वे मुंह के छालों से परेशान हैं तो वे कुछ भी करने को तैयार होते हैं। ऐसे में उन को इस तरह की प्राकृतिक खाद्य पदार्थों के इस्तेमाल के लिये प्रेरित करना और संतुलित आहार लेने की बातें वे खुशी खुशी पचा लेते हैं। एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात तो बतानी पिछली पोस्ट में भूल ही गया था कि ये जो अंकुरित दालें हैं ना ये विटामिनों से पूरी तरह से विशेषकर बी-कंप्लैक्स विटामिनों से भरपूर होते हैं। इसलिये इन्हें Power Dynamos भी कहा जाता है।

मुझे ख्याल आ रहा है कि मैंने पिछली पोस्ट में एक होस्टल में रह रहे 20-22 के लड़के की बात की थी......लेकिन बात वही है कि होस्टल में तो कुछ भी हो, हमें मैदे जैसे आटे की ही रोटियां मिलने वाली हैं। तो , ऐसे में उस लड़के को यह भी ज़रूर चाहिये कि वह खुद सलाद बना कर खाया करे,अपने रूम में ही अंकुरित दाल तैयार किया करे ( आज कल तो रिलांयस ग्रीन के स्टोर पर भी ये अंकुरित दालें मिलने लगी हैं) और हां, दो-तीन मौसमी रेशेदार फल ज़रूर ज़रूर खाया करें। इस से कब्ज की भी शिकायत न होगी और संतुलित आहार मिलने से मुंह की चमड़ी भी हृष्ट-पुष्ट हो जायेगी जिस से कि उस में छाले बनने की फ्रिकवैंसी धीरे धीरे कम हो जायेगी। सीधी सी बात है कि यहां भी काम हमारी इम्यूनिटी ही कर रही है....अगर अच्छी है तो हम इन छोटी मोटी परेशानियों से बचे रहते हैं।

अगली बात यह है कि मुंह में चाहे छाले हों, लेकिन धीरे धीरे हमें अपने दांतों को रोज़ाना दो बार ब्रुश तो अवश्य करना ही चाहिये। थोड़ा बच कर कर लें ताकि किसी छाले को न ज्यादा छेड़ दें। लेकिन इस के साथ ही साथ जुबान को रोज़ाना साफ करना निहायत ही ज़रूरी है....क्योंकि हमारी जुबान की कोटिंग पर अरबों-खरबों जीवाणु डेरा जमाये रहते हैं जिन से रोज़ाना निजात पानी बहुत आवश्यक है....नहीं तो ये दुर्गंध तो पैदा करते ही हैं और साथ ही साथ इन छालों को भी जल्दी ठीक नहीं होने देते। इन मुंह के छालों के होते हुये भी मैं जुबान की सफाई की सिफारिश इसलिये भी कर रहा हूं कि अकसर ये घाव/छाले जुबान की ऊपरी सतह पर नहीं होते हैं। लेकिन अगर कभी इस सतह पर भी छाले हैं तो आप दो-तीन दिन इस टंग-क्लीनर को इस्तेमाल न करियेगा।

अब बात आती है......बीटाडीन से कुल्ले करने की। अगर आप छालों की वजह से ज़्यादा ही परेशान हैं तो Betadine ….Mouth gargle से दिन में दो-बार कुल्ले कर लेने बहुत लाभदायक हैं........हमेशा के लिये नहीं............केवल उन एक दो –दिन दिनों के लिये ही जिन दिनों आप इन छालों से परेशान हैं। लेकिन रात के समय सोने से पहले इन छालों वालों दो-चार दिनों में इस बीटाडीन गार्गल से कुल्ला कर लेने बहुत लाभदायक है। यह भी आप की आवश्यकता के ऊपर निर्भर करता है...मेरे बहुत से मरीज़ फिटकरी वाले गुनगुने पानी से ही कुल्ले कर के खुश रहते हैं तो मैं भी उन की खुशी में खुश हो लेता हूं.....।





अब जाते जाते एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात यह है कि बहुत से लोग कुछ कुछ देसी तरह की चीज़े जैसे हल्दी , मलाई, ग्लैसरीन इन छालों के ऊपर लगाते रहते हैं....उन्हें इन से आराम मिलता है ....बहुत बढिया बात है....आयुर्वेद में और भी तो बहुत सी चीज़ें हैं जो हम लोगों को इन छालों के ऊपर लगाने के लिये अपने रसोई-घर से ही मिल जाती हैं , इन का भरपूर इस्तेमाल किया जाना चाहिये। ये दादी के नुस्खे नहीं हैं.....दादी की लक्कड़दादी भी ज़रूर इन्हें ही इस्तेमाल करती थी। लेकिन बस एक चीज़ से हमेशा बचें........कभी भूल कर भी एसप्रिन की गोली पीस कर मुंह में न रख लें.........भयंकर परिणाम हो जायेंगे......छालों से राहत तो दूर, मुंह की सारी चमड़ी जल जायेगी।

So, take care !! पोस्ट लंबी है लेकिन निचोड़ यही है कि इन छालों की इतनी टेंशन न लिया करें। और जितने भी प्रश्न हों, खुल कर टिप्पणी में लिख दें या ई-मेल करें....एक-दो दिन में जवाब आप के पास अगली पोस्ट के रूप में पहुंच जायेगा। बस, अपने खान-पान का ध्यान रखा करें और तंबाकू-गुटखा-पानमसाला के पाऊच बाहर किसी गटर में आज ही फैंक दें।

मसूड़ों से खून निकलना.....कुछ महत्त्वपूर्ण बातें...




मसूड़ों से खून निकलना एक बहुत ही आम समस्या है, लेकिन अधिकांश लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते। हां, अकसर लोग इतना ज़रूर कर लेते हैं कि अगर ब्रुश करने समय मसूड़ों से खून निकलता है तो ब्रुश का इस्तेमाल करना छोड़ देते हैं और अंगुली से दांत साफ करना शुरू कर देते हैं। यह बिल्कुल गलत है – ऐसा करने से पायरिया रोग बढ़ जाता है। कुछ लोग किसी मित्र-सहयोगी की सलाह को मानते हुये कोई भी खुरदरा मंजन दांतों पर घिसने लगते हैं , कुछ तो तंबाकू वाली पेस्ट को ही दांतों-मसूड़ों पर घिसना शुरू कर देते हैं। यह सब करने से हम मुंह के गंभीर रोगों को बढ़ावा देते हैं। 


जब भी किसी को मसूड़ों से रक्त आने की समस्या हो तो उसे प्रशिक्षित दंत-चिकित्सक से मिलना चाहिये। वहीं आप की समस्या के कारणों का पता चल सकता है। बहुत से लोग तो तरह तरह की अटकलों एवं भ्रांतियों की वजह से अपना समय बर्बाद कर देते हैं...इसलिये अगर किसी को भी यह मसूड़ों से खून निकलने की समस्या है तो उसे तुरंत ही अपने दंत-चिकित्सक से मिलना चाहिये। 

मसूड़ों से खून निकलने का सबसे आम कारण दांतों की सफाई ठीक तरह से ना होना है जिसकी वजह से दांत पर पत्थर( टारटर) जम जाता है। इस की वजह से मसूड़ों में सूजन आ जाती है और वें बिल्कुल लाल रंग अख्तियार कर लेते हैं। इन सूजे हुये मसूड़ों को ब्रुश करने से अथवा हाथ से छूने मात्र से ही खून आने लगता है। जितनी जल्दी इस अवस्था का उपचार करवाया जाये, मसूड़ों का पूर्ण स्वास्थ्य वापिस लौटने की उतनी ही ज़्यादा संभावना रहती है। इस का मतलब यह भी कदापि नहीं है कि अगर आप को यह समस्या कुछ सालों से परेशान कर रही है तो आप यही सोचने लगें कि अब इलाज करवाने से क्या लाभ, अब तो मसूड़ों का पूरा विनाश हो ही चुका होगा। लेकिन ठीक उस मशहूर कहावत....जब जागें, तभी सवेरा....के मुताबिक आप भी शीघ्र ही अपने दंत-चिकित्सक को से दिखवा के यह पता लगवा सकते हैं कि आप के मसूड़े किस अवस्था में हैं और इन को बद से बदतर होने से आखिर कैसे बचाया जा सकता है। 

कुछ लोग तो इस अवस्था के लिये अपने आप ही दवाईयों से युक्त कईं प्रकार की पेस्टें लगाना शुरू कर देते हैं अथवा महंगे-महंगे माउथ-वॉशों का इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं। लेकिन इस तरह के उपायों से आप को स्थायी लाभ तो कभी भी नहीं मिल सकता .....शायद कुछ समय के लिये ये सब आप के लक्षणों को मात्र छिपा दें। 


मसूड़ों की बीमारियों से बचने का सुपर-हिट अचूक फार्मूला तो बस यही है कि आप सुबह और रात दोनों समय पेस्ट एवं ब्रुश से दांतों की सफाई करें, जुबान साफ करने वाली पत्ती ( टंग-क्लीनर) से रोज़ाना जुबान साफ करें और हर खाने के बाद कुल्ला अवश्य कीजिये। इस के साथ साथ तंबाकू के सभी रूपों, गुटखों एवं पान-मसालों से कोसों दूर रहें। 

अकसर लोग अपनी छाती ठोक कर यह कहते भी दिख जाते हैं हम तो भई केवल दातुन से ही दांत कूचते हैं...यही राज़ है कि ज़िंदगी के अस्सी वसंत देखने के बाद भी बत्तीसी कायम है। यहां पर मैं भी उतनी ही बेबाकी से यह स्पष्ट कर देना चाहूंगा कि बात केवल मुंह में बत्तीसी कायम रखने तक ही तो सीमित नहीं है, बल्कि उस बत्तीसी का स्वस्थ रहना भी ज़रूरी है। 

अकसर मैंने अपनी क्लीनिकल प्रैक्टिस में नोटिस किया है कि जो लोग केवल दातुन का ही इस्तेमाल करते हैं, उन में से भी काफी प्रतिशत ऐसे भी होते हैं जिन के मसूड़ों में सूजन होती है। लेकिन इस का दोष हम दातुन पर कदापि नहीं थोप सकते !....यह क्या ?...आप किस गहरी सोच में पढ़ गये हैं !...सीधी सी बात है कि अगर आप कईं सालों से दातुन का ही इस्तेमाल कर रहे हैं और आप को दांतों से कोई परेशानी नहीं है तो भी आप अपने दंत-चिकित्सक से नियमित चैक-अप करवाइये। अगर वह आप के मुंह का चैक-अप करने के पश्चात् यह कहता है कि आप के दांत एवं मसूड़े बिल्कुल स्वस्थ हैं तो ठीक है ....आप केवल दातुन का ही प्रयोग जारी रखिये। लेकिन अगर उसे कुछ दंत-रोग दिखते हैं तो आप को दातुन के साथ-साथ ब्रुश-पेस्ट का इस्तेमाल करना ही होगा। 

एक विशेष बात यह भी है कि अकसर लोग दातुन का सही इस्तेमाल करते भी नहीं—वे दातुन को चबाने के पश्चात् दांतों एवं मसूड़ों पर कुछ इस तरह से रगड़ते हैं कि मानो बूट पालिश किये जा रहे हों...ऐसा करने से दांतों की संरचना को नुकसान पहुंचता है। आप चाहे दातुन ही करते हैं, लेकिन इस को भी दंत-चिकित्सक की सलाह अनुसार ब्रुश की तरह ही इस्तेमाल कीजिये।

तंबाकू की लत से जुड़े कुछ मिथक

कुछ दिन पहले जब मैं मुंबई के लोकल स्टेशनों के बाहर सुबह-सवेरे कुछ महिलाओं एवं बच्चों को दांतों पर मेशरी (जला हुया तंबाकू) घिसते हुए देख कर यही सोच रहा था कि यद्यपि यह भयंकर आदत मुंह के कैंसर को निमंत्रण देने के बराबर ही तो है, फिर भी जब हम विश्व तंबाकू मुक्ति दिवस मनाते हैं, तो उस अभियान में यह लोग केंद्र-बिंदु क्यों नहीं बन पाते। तम्बाकू पीना, चबाना, मुंह में लगाना या किसी भी रूप में प्रयोग करना नई महामारी को खुला निमंत्रण दिए जा रहा है और हम अपने अधिकतर संसाधन लोगों को केवल सिगरेट के दुष्परिणामों से वाकिफ़ करवाने में ही लगा देते हैं.........लेकिन समय की मांग है कि इस के साथ-साथ देश में व्याप्त तंबाकू प्रयोग से संबंधित विभिन्न मिथकों को तोड़ा जाए !!









बीड़ी सिगरेट से कम हानिकारक ?----
यह बिल्कुल गलत सोच है। बीड़ी भी कम से कम सिगरेट के जितनी तो घातक है ही। इस को सिगरेट की तुलना में चार से पांच गुणा लोग पीते हैं। एक ग्राम तंबाकू से औसतन एक सिगरेट तैयार होती है लेकिन इतना तंबाकू 3या 4 बीड़ीयां बनाने के काम आता है।
बीड़ी का आधा वज़न तो उस तेंदू के पत्ते का ही होता है जिस में तम्बाकू लपेटा जाता है। इतनी कम मात्रा में तम्बाकू होते हुए और अपना छोटा आकार होते हुए भी एक बीड़ी कम से कम भारत में बने एक सिगरेट के समान टार तथा निकोटीन उगल देती है, जब कि कार्बनमोनोआक्साइड तथा अन्य विषैले रसायनों की मात्रा तो बीड़ी में सिगरेट की अपेक्षा काफी ज्यादा होती है।
हुक्का पीना....कोई बात ही नहीं.....यह तो सब से सुरक्षित है ही !---रीयली ???-----हुक्के के कश में निकोटीन की मात्रा थोड़ी कम होती है क्योंकि इस में धुआं लम्बी नली व पानी में से छन कर आता है, लेकिन कार्बन-मोनोआक्साईड तथा कैंसर पैदा करने की क्षमता में कमी नहीं होती है। हुक्के में तंबाकू की मात्रा ज्यादा होती है जिससे शरीर में निकोटीन की मात्रा, ज्यादा देर तक हुक्का पीने के कारण बीड़ी सिगरेट के बराबर ही हानि पहुंचाती है।
यार, पिछले बीस-तीस साल से तो ज़र्दा-धूम्रपान का मज़ा लूट रहे हैं, अब क्या खाक होगा !----- ज़र्दा एवं धूम्रपान से होने वाली बीमारियों का शुरू शुरू में तो कुछ पता चलता नहीं है, इन का पता तब ही लगता है जब कोई लाइलाज बीमारी हो जाती है। लेकिन यह ही पता नहीं होता कि किस को यह लाइलाज बीमारी पांच वर्ष ज़र्दा-धूम्रपान के सेवन के बाद होगी या तीस वर्ष के बाद। चलिए, एक उदाहरण के माध्यम से समझते हैं--- अपने मकान के पिछवाड़े में बार-बार भरने वाले बरसात के पानी को यदि आप न देख पायें तो नींव में जाने वाले इस पानी के खतरे का अहसास आप को नहीं होगा। इस का पता तो तभी चलेगा जब इससे मकान की दीवार में दरार आ जाए या मकान गिर जाए, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। ज़र्दा-धूम्रपान एक प्रकार से बार-बार पिछवाड़े में भरने वाले पानी के समान है।







रोगों को मिल गई खान,
जिसने किया ज़र्दा-धूम्रपान !!
पान-मसाला, ज़र्दा मुंह को बस थोड़ा तरोताज़ाही ही तो करता है, और है क्या, काहे की टेंशन मोल लें ?-
दोस्तो, पिछले दो-तीन दशकों से तो हमारे देश में तंबाकू खाने की लत बहुत ही बढ़ गई है। पान-सुपारी-चूना वगैरह के साथ तंबाकू मिलाकर उसे चबाने की अथवा गालों के अंदर या जीभ के नीचे या फिर होठों के पीछे दबा कर रखने की बुरी आदत शहरी एवं ग्रामीण दोनों वर्गों में बहुत ज्यादा देखने को मिलती है। पान-मसालों या तंबाकू युक्त गुटखा के उत्पादों का आकर्षण तो बस बढ़ता ही जा रहा है। इन को तो विज्ञापनों की मदद से कुछ इस तरह से पेश किया जाता है कि ये तो मात्र माउथ-फ्रेशनर ही तो हैं !!—लेकिन ये लतें भी धूम्रपान जितनी ही नुकसानदायक हैं।
इन के प्रयोग से मुंह की कोमल त्वचा सूखी, खुरदरी तथा झुर्रीदार बन जाती है। मरीज का मुंह धीरे-धीरे खुलना बंद हो जाता है और उस व्यक्ति की गरम, ठंडा, तीखा, खट्टा सहन करने की क्षमता बहुत ही कम हो जाती है। इस स्थिति को ही सब-म्यूकस फाईब्रोसिस कहा जाता है और यह मुंह में होने वाले कैंसर के लिए खतरे की घंटी ही है।
अब, देखा जाए तो देश में तंबाकू की रोकथाम के कायदे-कानून तो काफी हैं...लेकिन, दोस्तो, बात फिर वहीं आकर खत्म होती है कि कायदे, कानून कितने भी बन जाएं, लेकिन फैसला तो केवल और केवल आप के मन का ही है कि आप स्वास्थ्य चाहते हैं या तंबाकू-----अफसोस, आप दोनों को नहीं चुन सकते। बस, कोई भी फैसला लेते समय ज़रा ये पंक्तियां ध्यान में रखिएगा तो बेहतर होगा....
ज़र्दा-धूम्रपान की लत जो डाली,देह रह गई बस हड्डीवाली !!

सर्दी लग जाने पर क्या करें ?



सर्दी लग जाने पर क्या करें ?
दोस्तो, इस मौसम में तो लगता है हर कोई ठंड लग जाने से हुई खांसी जुकाम से परेशान है। शीत लहर अपने पूरे यौवन पर है। इस से बचने एवं साधारण उपचार पर चलिए थोड़ा प्रकाश डालते हैं..........

  • · इस मौसम में तो लोग खांसी-जुकाम से परेशान हो जाते हैं।
ठंड के मौसम में वैसे भी हम सब की इम्यूनिटी (रोग से लड़ने की प्राकृतिक क्षमता) कम होती है। ऊपर से इन तकलीफों से संबंधित विषाणु (विशेषकर वायरस) खूब तेज़ी से फलते-फूलते हैं। ज्यादा लोगों को पास पास एक ही जगह पर रहने से अथवा एकत्रित होने से खांसी एवं छींकों के साथ निकलने वाले वायरस (ड्रापलैट इंफैक्शन) एक रोगी से दूसरे स्वस्थ व्यक्तियों को जल्दी ही अपनी चपेट में ले लेते हैं।
  • · अब प्रश्न यही उठता है कि इस से बचें कैसे....क्या कुछ विशेष खाना चाहिए ..
इस से बचे रहने का मूलमंत्र तो यही है कि आप पर्याप्त एवं उपर्युक्त कपड़े पहन कर ठंडी से बचें। ऐसे कोई विशेष खाध्य पदार्थ नहीं हैं जिससे आप इस से बच सकें। आप को तो केवल शरीर की इम्यूनिटि बढ़ाने के लिए सीधा-सादा, संतुलित आहार लेना चाहिए--- इस से तरह तरह की दालों, साग, सब्जियों, मौसमी फलों , आंवले इत्यादि का प्रचुर मात्रा में सेवन आवश्यक है।
  • · लोग अकसर इन तकलीफों में स्वयं ही एंटीबायोटिक दवाईयां लेनी शुरू कर देते हैं.....क्या यह ठीक है ??
सामान्यतयः इन मौसमी छोटी मोटी तकलीफों में ऐंटीबायोटिक दवाईयों का कोई स्थान नहीं है। अगर यह खांसी –जुकाम बिगड़ जाए तो भी चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही दवाईया लें।
  • · इस अवस्था में पहले तो लोग घरेलु नुस्खों से ही काम चला लिया करते थे और वे स्वस्थ भी हो जाया करते थे।
ये घरेलु नुस्खे आज भी उतने ही उपयोगी हैं जितने पहले हुया करते थे। इस में मुलहट्ठी चूसना, चाय में एक चुटकी नमक डाल कर पीना, नींबू और शहद का इस्तेमाल, भाप लेना, नमक वाले गर्म पानी से गरारे करना शामिल हैं। ध्यान रहे कि भाप लेते समय पानी में कुछ भी डालने की आवश्यकता नहीं है।
  • · घरेलु नुस्खों के साथ-साथ और क्या करें ?
हां,हां, यह बहुत जरूरी है कि रोगी को उस के स्वाद एवं उपलब्धता के अनुसार खूब पीने वाले पदार्थ देते रहें, मरीज पर्याप्त आराम भी लें। बुखार एवं बदन टूटने के लिए दर्द निवारक टेबलेट ले लें।
  • · नन्हे-मुन्ने शिशुओं का नाक को अकसर इतना बंद हो जाता है कि वे मां का दूध तक नहीं पी पाते ...
ऐसा होने पर यह करें कि एक गिलास पानी में एक चम्मच नमक डाल कर उबाल लें। फिर उसे ठंडा होने दें। बस हो गई तैयार आप के शिशु के नाक में डालने की दवा। आवश्यकतानुसार इस की 3-4 बूंदें शिशु के नाक में डालते रहें जिस से उस के नाक में जमा हुया रेशा ( dried-up secretions) नरम होकर छींक के साथ बाहर आ जाएगा और शिशु का नाक खुल जाएगा। वैसे तो इस तरह की नाक में डालने की बूंदें (सेलाइन नेज़ल ड्राप्स) आप को कैमिस्ट की दुकान से भी आसानी से मिल सकती हैं।
  • · कईं बार जब जुकाम से पीड़ित मरीज़ अपनी नाक साफ करता है तो खून निकल आता है जिससे वह बंदा बहुत डर जाता है, ऐसे में उन्हें क्या करना चाहिए ...
ज्यादा जुकाम होने की वजह से भी सामान्यतयः नाक को साफ करते समय दो-चार बूंदें रक्त की निकल सकती हैं। लेकिन ऐसी अवस्था में किसी ईएऩटी विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श कर ही लेना चाहिए।
  • · ऐसा कौन सी अवस्थाएं हैं जिन में कान-नाक-गला विशेषज्ञ से संपर्क कर लेना चाहिए...
खांसी जुकाम से पीड़ित मरीज को अगर कान में दर्द है, सांस लेने में कठिनाई हो रही है, गले में इतन दर्द है कि थूक भी नहीं निगला जा रहा, गले अथवा नाक से खून निकलने लगे,आवाज़ बैठ जाए, खांसी की आवाज़ भी अगर बदली सी लगे, खांसी-जुकाम से आप को तंग होते हुए अगर सात दिन से ज्यादा हो जाये अथवा यह तकलीफ़ आप को बार-बार होने लगे------इन सब अवस्थाओं में ईएनटी विशेषज्ञ से तुरंत मिलें।
  • · लोग अकसर थोड़ी बहुत तकलीफ होने पर ही नाक में डालने वाली दवाईयों तथा खांसी की पीने वीली शीशीयां इस्तेमाल करनी शुरू कर देते हैं......
नाक में डालने वाली दवाईयों तथा नाक खोलने के लिए उपयोग किए जाने वाले इंहेलर का भी चिकित्सक की सलाह के बिना पांच दिन से ज्यादा उपयोग न करें। इन को लम्बे समय तक इस्तेमाल करने से और भी ज्यादा जुकाम होने का डर बना रहता है। रही बात खांसी की शीशीयों की, बाज़ार में उपलब्ध ज्यादातर खांसी की इन दवाईयों का इस अवस्था में कोई उपयोग है ही नहीं।
  • · कान में दर्द तो आम तौर पर सभी को कभी कभार हो ही जाता है न......इस में तो कोई खास बात नहीं है न ?
कान में दर्द किसी सामान्य कारण (जैसे मैल वगैरह) से है या कान के भीतरी भागों में इंफैक्शन जैसी किसी सीरियस वजह से है, इस का पता ईएनटी विशेषज्ञ से तुरंत मिल कर लगाना बहुत ज़रूरी है। विशेषकर पांच साल से छोटे बच्चों में तो इस का विशेष ध्यान रखें क्योंकि ऐसी इंफैक्शन कान के परदे में 24 से 48 घंटों के अंदर ही सुराख कर सकती है।